इस अंतहीन विस्तार में
खामोश इक शाम है
आहट भी हुई अगर तो
रात की चादर में कहीं
खो ना जाएँ साँसों की सिलवटें
डर लगता है|
बस इक सांस भर की दूरी है
शब्द और आवाज़ में
कह दूं अगर तो
अल्फाजों के जंगल में कहीं
खो ना जाएँ ये जज़्बात
डर लगता है|
पलकों तक जो आयी है
छलकने आसूं की इक बूँद
आज़ाद हो जाये अगर
तो दरिया की लहरों में कहीं
खो ना जाये ये भी बात
डर लगता है|
–ऐश्वर्या तिवारी
in collaboration with Srijan; BITS Pilani, Goa