दिल में जो थी एक उमींद बाकी वो भी टूट गयी
आखों के कोने से वो पता नहीं कब आसूँ बन के छुट गयी
थामें थे जो सपने इन मुठियों में
खोली तो पाया की इन उँगलियों के बीच से वो रेत की तरह बह गए
अब बाकी है तो एक टूटा घरोंदा
भूली बिसरी यादों की कब्र हो जैसे
सिली सी दीवारें है उसकी
और अँधेरे से कोने
जिनके इर्द गिर्द दिन के उजालें जाने से भी कतराते हैं
जाती है तो सिर्फ रात की खामोशियाँ
और किसी दिन एक सुबह बस जायेगी एक बार वहाँ से सारी यादें
किन्ही चार कंधो पे , सत्य की आवाज़ के साथ….
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