जब चाँद हवा की पगडण्डी पर चलते-चलते ठहरा हो ,
जब नीली आँखों पर काली जोगन का जादू गहरा हो .
जब शोर मचाते बाज़ारों के होठ पे लटके ताले हो ,
जब अलसाई सी राहो ने आधे से होश संभाले हो.
जब बंजारे जुगनी चांदी की लौ में जलते-बुझते हो,
और तारे नींद के आँचल की सिलवट में छुपकर बैठे हो.
तब बन कस्तूरी मेरे फीके ख़्वाबों को रंग जाना तुम ,
हाँ लाज का घूंघट ढलका कर तब मुझसे मिलने आना तुम .
जब बुझा अंगीठी अम्मा चौबारे में थककर लेटी हो ,
जब बाबा के खर्राटों की आवाज़ से तुम डर बैठी हो .
जब बंद पड़ोसन के बिट्टू-मुन्नी-बबलू का झगडा हो ,
जब लगा किवाड़ों में कुण्डी चुप्पी में कैद मौहल्ला हो .
जब दिल की धड़कन चौकीदार की सीटी से भी तेज़ सुनो ,
हर सांस पे जब तुम खुद से धीमे-धीमे मेरी बात करो .
तब आस मेरी होठों पर ले , मुझको आवाज़ लगाना तुम ,
हाँ लाज का घूंघट ढलका कर तब मुझसे मिलने आना तुम .
जब तुम्हे छुऊँ मैं आँखों से तुम आँखें मेरी पढ़ लेना ,
पथरीली रातों के पर्वत , मेरी बाहें थामे चढ़ लेना .
मैं सहलाऊँ जब बदन तुम्हारा , सूखे पात की उंगली से ,
मेरी नब्ज़ की हिचकी सुनना तुम गेसू की झीनी बदली से .
तुम अपनी ठंडी आहों से मेरा तपता सीना तर करना ,
मासूम अदा की बौछारों से प्यार मुझे जी भर करना .
फिर सिमट के अपने सायों को हाथों से जकड शरमाना तुम ,
हाँ लाज का घूंघट ढलका कर जब मुझसे मिलने आना तुम .
जब चाँद तुम्हारी छत के जीने चढ़ने में अलसाता हो ,
जब सूखे होठों पर हौले से नाम मेरा बिछ जाता हो .
जब पकवानों की खुशबू से भी मीठी तुमको भूख लगे ,
जब दुआ में मेरी खैर मांगते दिन बीते और सांझ ढले .
मेरी याद की जूठन होठ लगा ,तुम चाँद चखो जब छलनी से ,
और मेरी तस्वीरें ढूंढो चंदा पे झपटती बदली में .
तब मेरा किस्सा हंसी में ले ,पानी को हाथ लगाना तुम ,
हाँ लाज का घूंघट ढलका कर तब मुझसे मिलने आना तुम .
मैं बन सागर जो तुम्हे संदेसे भेजूं उठती लहरों से ,
बेताब किसी नदिया सी आना छूट के जग के पहरों से .
तुम मेरे आधे गीतों को सरगम बनकर पूरा करना ,
तुम मेरे मन की ताल पे अपने घुँघरू की बोली भरना .
मैं भस्म लपेटे बैरागी सा झूमूं जब नटराज बना,
तुम शैलसुता सी जोगन हो मेरे मन की थिरकन बनना.
मैं कान्हा बन जब मुरली छेड़ूं . राधा सी हो जाना तुम .
हाँ लाज का घूंघट ढलका कर तब मुझसे मिलने आना तुम .
मैं कभी जो घबरा करवट लूं तुम सिरहाने थपकी देना
अपने आंसूं बरसा कर मुझपर हंसी होंठ पर रख लेना .
जो कभी क़दम मेरे भटके बेछोर भंवर में सपनो की ,
राहत दे देना मुझको राहें देकर अपने क़दमों की .
मैं हो जाऊं जब धुंधले हर्फ़ सा दफन किसी दिन पन्नो में
गुलाब सी महकी मिलना तब मुझको तुम बंद किताबों में .
मैं मूंदूं आँख तो रूह में मेरी खुशबू सी घुल जाना तुम .
हाँ लाज का घूंघट ढलका कर तब मुझसे मिलने आना तुम .
Vivek Malviya
Maulana Azad National Institute of Technology, Bhopal
Ansal Properties & Infrastructure Ltd.