मूक प्रेम संवाद

Posted: March 31, 2013 by Ankur in Hindi Write-ups, Live Events, Writes...
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जब माँ की ममता चरमवस्था पर पहुँचती है, जब वह अपना प्रेम सागर अपने बच्चे पर उडेल देती है तब उस छवि में ईश्वर का आकार निखर कर दिखाई देने लगता है | उसकी ममता में ईश्वर का जाई घोष सुनाई पड़ता हैं | निर्जीव, निरर्थक चीज़ों में भी अपनी रचनात्मकता से कोई अगर उसे सबसे महत्वपूर्ण बना सकता है, तो वो केवल एक नाबालिग बच्चा ही हो सकता हैं | माँ और बच्चे की विरह पीड़ा इतनी गहरी होती है कि उसमे ब्रह्मांड समा भी समा जाए और एक अबोध बालक की हँसी में इतनी उदारता होती है की एक नया ब्रह्मांड ही पैदा हो जाए |

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अर्थ,काम,मोह से बढ़कर

प्रेम का अस्तित्व हैं

माँ की ममता में समाया है ईश्वर

यही अंतिम सत्य हैं. . . .

. . . . निस्वार्थ प्रेम, यही उसका चरित्र हैं |

उड़ता हैं हवाओं में बादलों की तरह

रख कर पाँव ज़मीन पर

हौले-हौले,रुक-रुक कर,थम कर

बढ़ता है वो रखकर अपनत्व की अपेक्षा

अपेक्षाओं की थाली में परोसती है माँ,

मीठा-मीठा सा प्यार,

आँखेबंद कर निश्चिंत भाव से,

पी जाता है वो सारा प्यार |

माँ की ममता, विरह की कथा,

बच्चे की पीड़ा,माँ का प्यार,

सुख-दुख सदा,सदा ही साथ,

मिलता है मुझे ये तत्व ज्ञान,

प्रेम ही आराधना,प्रेम ही पूजा,प्रेम ही सम्मान |

अभिव्यक्ति के तरीके से ज़्यादा महत्वपूर्ण उसके पीछे छिपी हुई भावना है | माँ से बेहतर इसे और कों समझ सकता हैं |

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