…न जाने क्यूँ ये जिंदगी उन चंद ख्वाहिशों की मोहताज है ,
न जाने क्यूँ इन खामोशीयों मे भी आवाज़ है।
मेरी रूह अब करती एक आवाज़ है ,
हाँ एक रूह की आवाज़ है ,
जो दे रही एक अज़ाब (पीड़ा) है
एक अज़ाब जो बुन रहा एक ख्वाब,
उस ख्वाब का पंछी हूँ मैं ,
जो हो रहा है उसका साक्षी हूँ मैं ,
ये वही हूँ मैं,
जो उस दर्द का गुनहगार है
हर उस खुशी का हकदार है ,
जो अब तक उससे जुदा है
जुदा है तब तक ,
जब तक ये ख्वाब पूरा न हो
जब तक इस पंछी की उड़ान पूरी न हो ।
माना ये दर्द मुझे जीने न देगा
पर मुझे पूरा विश्वाश है ,
यही मुझे जीने की वजह देगा
यही मुझे जीने की वजह देगा …
Vishal Maurya
Zakir Husain Delhi College, DU
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Nice