बावरा हुआ रे मन ये बावरा हुआ . .
अपनी ही धुन में मन मेरा ये बावरा हुआ . .
मेरे दर की हर दहलीज़ को ये लाँघता चला . .
कुछ टेढ़े-मेढ़े रस्तों पर . .
. . . कभी इस डगर कभी उस डगर . .
. . . . . . या कोई सपनों का शहर , तलाशने चला . .
बावरा हुआ रे मन ये बावरा हुआ . .
बाधाओं की लकीर को मिटाता चला . .
न जाने किस दिशा की ओर . .
. . . हर बात की फ़िकर को छोड़ . .
. . . . . . रहा न मेरा इसपे ज़ोर , ये चलता चला . .
बावरा हुआ रे मन ये बावरा हुआ . .
अपनी ही धुन में मन मेरा ये बावरा हुआ . . !!
Sugandh Jha