ये मेरी पत्थर रूपी जिंदगी पिघलती क्यूँ नही
ये बुझी हुई रख अब राख़ क्यूँ जलती क्यूँ नही,
न जाने किस जलन के साये मे जल रहा हूँ
इस जिंदगी का नही पता , पर मैं पिघल रहा हूँ ।
मेरे इस पिघलन मे मेरा सब कुछ है जल जाता
उन बातों को वो खामोशी से कह जाता ,
काश मेरा अक्स इस पिघलन के साये से बच जाता
तो मेरा जो मेरा है , मुझ मे ही रह जाता ।
वो मुझ मे ही रह जाता , काश उस दिन ने दस्तक न दी होती
तो मेरी जिंदगी काटों भरी न होती ,
इन काटों के जख्म अब नासूर बन गए हैं ,
कभी न जाने वाले वो निशान छोड़ गए हैं ,
एहसान तेरा मैं मानु , तन्हा मुझे जो किया है
कम से कम वो दर्द भरा निशान तो दिया है ,
ये निशान एक एहसास है , जो तेरी याद दिलाता है
मुझसे तुझसे कभी प्यार था ,इसका सबूत लाता है …
Vishal Maurya
Zakir Husain Delhi College, DU