एक रोज जो ‘जिंदगी’ ने दी थी गवाही, मेरे ख्वाब के सच होने की
आज जब पहुचा ‘अदालत –ऐ-जिंदगी’ मे तो , बयान से मुकरने लगी ।
सोचा था जो… ये हवाए , परवाज़ देंगी मुझे ‘मंजिल की दिशा’ मे
आज जो उड़ान भरी तो , अपना रुख बदलने लगी ।
गुमान था…. जिस ‘दोस्ती’ पर ,कहते थे यार जिनको
आज जब मुश्किलों से सामना हुआ तो , दोस्ती दगा देने लगी ।
कहती थी… जो ‘रात’ मुझसे ,मेरे ख्वाबों को सहेजेगी
आज जब ख्वाब पूरा होने को हुआ तो , सुबह को बुलाने लगी ।
सँजोये रखा था… जिस ‘दर्द’ को , के लिखेंगे कभी ‘मरहम की स्याही’ मे डुबोकर
आज जब ‘विशाल’ लिखने बैठा तो , स्याही सूखने लगी ……..
Vishal Maurya
Zakir Husain Delhi College, DU