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Friendship

Posted: March 28, 2013 by Ankur in Live Events, Writes...
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In this large world, we only fill a small place
There required someone to fill the side’s space

Friendship is the way to fulfill this life’s need
It is a relation, a true relation including every colorful scene

A true friend can be anyone
With whom we have a strong bond

Friendship is not only a combo of friend and ship
It is hard to explain it, with a spoon or with a sip

If we have a friend in life we have a voice
We need no other choice

Sometimes friendship forces us to leave our place
It is hard to get out and get going in any case

We keep looking at our previous life’s sight
Why we give God all this night?

There is no one to complain, no one to explain
We only have a pen and paper in our hand

selected (2)

Paraphrasing:  The world we live in is very big and we can’t spend our whole life alone. So we need someone to be there with us, to delete our life’s emptiness. Life is a gift from God. To enjoy it we need the relation of friendship. The friendship involves strong bond. Friendship is not just a word. It is hard to explain it. It is hard to show all its features. Only friend can help us to handle all kind of situations. We don’t need any other choice.  Sometimes friendship forces us to get going in any other way out but it is very hard to face it. Sometimes God doesn’t do well to us. And the worst case is that we can’t complain

logoSneha Sarkar

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Creative Writing event @ Panache 2013 by CampusWriting…

(Fourth Place Winning Article)

मेरे दोस्त

Posted: September 27, 2012 by Ankur in Hindi Write-ups, Writes...
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कविता ,
कहाँ से शुरू करूँ
यही सोच रहा हूँ
सुबहा के ठीक 4.38 बजे
नींद?
हाँ याद आया
तुम कहते हो मुझे
रात के १-२ बजे तक
सो जाना चाहिए
की सेहत के लिए

अछा नही होता
रात को जागना

पर आज नही मेरे दोस्त
आज कुछ कहना चाहता हूँ मैं
कुछ बताना चाहता हूँ
कि मेरे मन के भाव
तुम्हें पता होने चाहिए
शायद,तुम्हें ये पता हों
या हो सकता है
मेरा व्यक्तित्व
ही कुछ कमजोर हो

मेरे दोस्त ,
१२ जून २०१० कि रात के बाद
नींद नही आती मुझे
या कह लो
डरता हूँ मैं सोने से
नामुमकिन सा है

मेरे हमसाए ,
आज भी याद है
मुझे वो रात
जैसे कल ही बात हो
१२ जून २०१०
जब आखरी बार देखा था उसे
जब आखरी बार
मैने वो डर महसूस किया था
जो मैं हमेंशा मसूस करता
उसके साथ होने पर
तुम सोचोगे की
उसकी बात के बिना
मेरी कोई कविता
पूरी नही होती
पर एसी भी
कोई कविता नही
जिसमें तेरी बात ना आए

तुम ने उस रात
उसके काँपते होठ
नही देखे ,
या एक आजीब सा दर्द
जो उसकी आखों में था
क्या करूँ कैसे भूल जायूं
उसके आखरी वाक्य
जब उसे पता था
अंत करीब है
कितनी ही कोशिश
करता हूँ
पर फिर भी याद हैं मुझे

“जाने दो मुझे
आज मत रोको
छोटा सा जीवन
बाकी है
उसे जीना चाहता हूँ
पूरे जोश,
होसले से
हाँ वादा करता हूँ
की आखरी सांस
आपकी बाहों में ही लूँगा ”
तू ही बता
कोई भूल सकता है इन्हें?

मेरे दोस्त
हो सकता है
तुम्हें ये कविता
बेतुकी सी लगे
या तुम इसे पड़ो ही ना
पर मैं तुम्हें कहना चाहताहूँ
की तुम ठीक ही कहतेहो
“की कोई आए
या ना आए
तुझे कोई फ़र्क
नही पड़ता”
तुम्हें एक दोस्त
के रूप मे बहुत
प्यार किया है मैंने
ओर तुम्हें “साथी”
कहने की तंमना है
बस

मेरे दोस्त
मुझे आज भी याद हैं
वो हमारा घंटों -२
प्यार की बातें करना
तुम्हारा हर पेज पे “एम”
ओर मेरा “आइ” लिखना
फिर उसके बाद समये आया
की हमने पहचाना
दुनिया का करूप-विरूप चेहरा
ओर चाहा
की कुछ भी हो
इस स्माज को बदलना ही होगा
ओर मुझे याद है
पहली बहस
३० की मार्केट के सामने
जब मैने कहा था
“दोस्ती के लिए
एक जैसे विचार होना
ज़रूरी है”
ओर तुम्हारा कहना था
“हो सकता है की एसा हो
अगर मैं कहीं रुक गया
तो खींच कर ले चलना
मुझे ”

क्या करूँ
समझ नही आता
मकड़ी के जाले से
उलझे विचार हैं
तुम्हे याद हैं
वो दिन
जब सब कुछ
साफ था मेरे लिए
वो मेरा लोगों से
घंटो बहस करते जाना
जीवितों की दुनिया
क़ि बातें करना
तेरी वो उस वक्तकी
आखरी बात भी याद
है मुझे
“कुछ समय चाहिए
मुझे ,इस सफ़र पर
निकालने से पहले”
अभी भी इंतज़ार है
मुझे तुम्हारा

मेरे दोस्त
ज़्यादा मत सोचो
सफ़र की तायारियों
के बारे में
बस फिसल जाओ
जैसे फिसलते हैं बर्फ पर
छा जाने दो खुद पर
इस अंतहीन
सागर का नशा
जिसे सिर्फ़ हमे
साथ२ पार करना है
पर तुम्हें
रोक रहें हैं
बासी रिश्ते,
कमजोर दोस्तिया ,
पतंगे,टिड्डे
कुएें के मेंडक

मेरे दोस्त
तुम्हें लगता है
मैं चिड जाता हूँ
छोटी२ बातों पर
ओर मुझे गुसा आता
है जब तुम ठीक होते हो
पर मुझे तो
गुस्सा आता है
ये देखकर की छोटी२
कभी ना ख़तम होने
वाली हर रोज़ की
ग़लतिया ही नज़र
हैं तुम्हें ,
मेरे लिए
तुमसे बिना मतलब की बातें करना
या जोक्स सुनना सुनाना
या मोबाइल की बातें
या तुम से ना मिलना
या तुम्हारे होते हुए
गेम खेलना
या फिर समये पर
ना आना
सब बराबर है
इन सब चीज़ो
से छिड़ होती है
तंग आ गया हूँ
इंससे

ओह कुछ ज़्यादा ही लम्बी
हो गयी बातचीत
पर फ़ैसला तुम्हें लेना है
की कोनसा किनारा चुनते हो तुम
ज़्यादा समये नही है
हमारे पास
नाव लिए मैं
खड़ा हूँ दूसरे
किनारे पर
सागर की तरफ जाने को

रूको ज़रा
एक बात ओर बात
इस पार आओ तो
पुराने रिश्तों
दोस्तियों को
उस पार ही छोड़ आना
की उनके बस का नहीं
इस बीहड़ ओर मुश्किल
रास्ते पर चलना

जल्दी करना
मेरे दोस्त

—साथी