गुब्बारों से इस मन के हसीन सपने
पकड़ ढीली पड़ी और बस उड़ने लगे
खुले आसमान में
किसी भी मनचाही दिशा में
पर कहाँ टिक पाती हैं खुशियाँ
ज्यादा समय तक इस संसार में
दब के फूट ही जाते
बस चिथड़े ही रह जाते
और न जाने कब वो भी गुम जाते …
पर फिर भी ये ख़तम कहाँ होते
फिर एक नया रंग और उमंग लिए
यहीं कहीं आस-पास उड़ते नज़र आ ही जाते हैं …
-अनुमेहा
sarang1.wordpress.com
in collaboration with Srijan; BITS Pilani, Goa
Loved it!